श्रमिक पुत्र कभी अभिनेता नहीं बनता-हास्य कविता-व्यंग्य कविता



आज मजदूर दिवस है
आओ सब मिलकर नारे लगायें
जो गरीबों और मजदूरों को भायें
जन कल्याण और न्याय के लिये
जोर से आवाज उठायें
फिर भूल चाहे भूल जायें
एक ही दिन तो सब करना है
फिर कौन पूछेगा कोई कि
हम क्या कर रहे हैं
मजदूर दिवस कोई रोज नहीं आता
जो कोई फिक्र करें कि
उसके बाद भी कुछ करना होगा
फिर तो पूर वर्ष
न नारे होंगे न कोई सभायें
फिर क्यों घबड़ायें
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यह कवितापाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अनुभूति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इस लेख के अन्य बेवपत्रक/पत्रिकाएं नीचे लिखी हुईं हैं
1. अनंत शब्दयोग
2.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

पत्थर तोडने वाले मजदूर की बेटी से
खेलते हुए दूसरे मजदूर के बेटे ने कहा
‘‘मै तो बड़ा होकर हीरो बनूंगा’
उसने कहा
‘‘अब ठहर गया है जमाना
समय बदलता है यह सत्य है
पर कितना भी बदले
मजदूर का बेटा हीरो नहीं बनता है
सब जगह यही है हाल
यहां आदमी अब मां के पेट से बनता है
मजदूर का बेटा चाहे कितना भी कर ले
वह समाज में हीरो नहीं बनता है
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