कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि।।’
हिन्दी में भावार्थ-गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार जो व्यक्ति न किसी को डराता है न स्वयं किसी से डरता है वही ज्ञानी कहलाने योग्य है।
जाति का गरबु न करि मूरख गवारा।
इस गरब ते चलहि बहुतु विकारा।।
हिन्दी में भावार्थ-गुरुवाणी में मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि ‘हे मूर्ख जाति पर गर्व न कर, इसके चलते बहुत सारे विकार पैदा होते हैं।
हिन्दी में भावार्थ- गुरुग्रंथ साहिब में भारतीय समाज में व्याप्त जाति पाति का विरोध करते हुए कहा गया है कि हमारी जाति पाति तो केवल गुरु सत गुरु है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-प्राचीनकाल में भारत में जाति पाति व्यवस्था थी पर उसकी वजह से समाज में कभी विघटन का वातावरण नहीं बनता था। कालांतर में विदेशी शासकों का आगमन हुआ तो उनके बौद्धिक रणनीतिकारों ने यहां फूट डालने के लिये इस जाति पाति की व्यवस्था को उभारा। इसके बाद मुगलकाल में जब विदेशी विचारधाराओं का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था तब सभी समाज अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिये संगठित होते गये जिसकी वजह से उनमें रूढ़ता का भाव आया और जातीय समुदायों में आपसी वैमनस्य बढ़ा जिसकी वजह से मुगलकाल लंबे समय तक भारत में जमा रहा। अंग्रेजों के समय तो फूट डालो राज करो की स्पष्ट नीति बनी और बाद में उनके अनुज देसी वंशज इसी राह पर चले। यही कारण है कि देश में शिक्षा बढ़ने के साथ ही जाति पाति का भाव भी तेजी से बढ़ा है। जातीय समुदायों की आपसी लड़ाई का लाभ उठाकर अनेक लोग आर्थिक, सामजिक तथा धार्मिक शिखरों पर पहुंच जाते है। यह लोग बात तो जाति पाति मिटाने की करते हैं पर इसके साथ ही कथित रूप से जातियों के विकास की बात कर आपसी वैमनस्य भी बढ़ाते है।
संकलक लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’, Gwalior
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