वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये-हिंदी कविता


जिनको माना था सरताज
वह असलियत में सियार निकल आये
भरोसा किया था जिन पर
वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये
उनके लिये लड़ते हुए थकेहारे
सब कुछ गंवा दिया
इसलिये हम कसूरवार कहलाये
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अपनी जिंदगी के राज किसको बतायें
अपने गमों से बचने के लिये सब मजाक बनायें
टूटे बिखरे मन के लोगों का समूह है चारों तरफ
किसके आसरे अपना जहां टिकायें
बेहतर है खुद ही अपने पीर बन जायें
आकाश में बैठे सर्वशक्तिमान को किसने देखा
और कौन समझ पाया
फिर जब दूसरे बन जाते है पहुंचे हुए
तो हम खुद क्यों पीछे रह जायें

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आदमी स्वयं भ्रम में फंसा नजर आता-हिन्दी कविता


यूं तो वक्त गुजरता चला जाता
पर आदमी साथ चलते पलों को ही
अपना जीवन समझ पाता
गुजरे पल हो जाते विस्मृत
नहीं हिसाब वह रख पाता

कभी दुःख तो कभी होता सुख
कभी कमाना तो कभी लुट जाना
अपनी ही कहानियां मस्तिष्क से
निकल जातीं
जिसमें जी रहा है
वही केवल सत्य नजर आती
जो गुजरा आदमी को याद नहीं रहता
अपनी वर्तमान हकीकतों से ही
अपने को लड़ता पाता

हमेशा हानि-लाभ का भय साथ लिये
अपनों के पराये हो जाने के दर्द के साथ जिये
प्रकाश में रहते हुए अंधेरे के हो जाने की आशंका
मिल जाता है कहीं चांदी का ढेर
तो मन में आती पाने की ख्वाहिश सोने की लंका
कभी आदमी का मन अपने ही बोझ से टूटता
तो कभी कुछ पाकर बहकता
कभी स्वतंत्र होकर चल नहीं पाता

तन से आजाद तो सभी दिखाई देते हैं
पर मन की गुलामी से कोई कोई ही
मुक्त नजर आता
सत्य से परे पकड़े हुए है गर्दन भौतिक माया
चलाती है वह चारों तरफ
आदमी स्वयं के चलने के भ्रम में फंसा नजर आता
……………………………….

लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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रहीम के दोहेःसहृदय लोगों को बुरी संगति नहीं फलती


रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग

कविवर रहीम कहते हैं कि जिनकी प्रवृत्ति उजली और पवित्र है अगर उनकी संगत नीच से न हो तो अच्छा ही है। नीच और दुष्ट लोगों की संगत से कोई न कोई कलंक लगता ही है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सज्जन और उज्जवन प्रकृति के लोग शांत रहते हैं इसलिये उनको ऐसे लोगों की संगत नहीं करना चाहिये जो दुष्टता और अशांत प्रवृत्ति के होते हैं। वैसे आजकल के लोगों में यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है कि वह दलाल और दादा प्रवृत्ति के लोगों की संगत चाहते हैं ताकि कोई उनका कोई बिगाड़ नहीं सके। फिल्म देखकर यह धारणा बना लेते हैं कि दादा लोग किसी से किसी की भी रक्षा कर सकते हैं। कई सज्जन परिवार को लड़के भी भ्रमित होकर दादा किस्म के लड़कों के चक्कर में पड़ जाते हैं तो कई लड़कियां भी अपने लिये ऐसे मित्र चुनती है जो दादा टाईप के हों। उनको लगता है कि वह दादा किस्म के मित्र इस समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। देश में इसलिये ही सभी जगह अपराधीकरण का बोलबाला हो रहा है क्योंकि जो उज्जवल और शांत प्रकृत्ति के हैं वह अपना विवेक खोकर ऐसे लोगों को संरक्षण देते हैं जो समाज के लिये खतरा है।

यह बात समझ लेना चाहिये कि बुरे का अंत बुरा ही होता है। दादा और दलाल आकर्षक लगते हैं पर उनकी समाज में कोई सम्मान नहीं होता। बुराई का अंत होता है और ऐसे में जो दुष्ट लोगों की संगत करते हैं उनको भी दुष्परिणाम भोगना पड़ता है।
लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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सच को छिपाना कठिन-हिंदी शायरी


सत्य से जितनी दूर जाओगे
भ्रम को उतना ही करीब पाओगे
खवाब भले ही हकीकत होने लगें
सपने चाहे सामने चमकने लगें
उम्मीदें भी आसमान में उड़ने लगें
पर तुम अपने पाँव हमेशा
जमीन पर ही रख पाओगे

झूठ को सच साबित करने के लिए
हजार बहानों की बैसाखियों की
जरूरत होती है
सच का कोई श्रृंगार नहीं होता
कटु होते हुए भी
उसकी संगत में सुखद अनुभूति होती हैं
कब तक उससे आंखें छिपाओगे
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लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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रहीम के दोहेःईश्वर का वर्णन कोई नहीं कर सकता


रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नाहिं
जो जानत सो कहत नहिं, कहत त जानत नाहिं

कविवर रहीम कहते हैं कि परमात्मा का वर्णन करना कठिन है। उसका स्वरूप अगम्य है और कहना सुनना कठिन है जो जानते हैं वह कहते नहीं हैं जो कहते हैं वह जानते नहीं।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सच तो यह है कि परमात्मा के स्वरूप कोई समझ नहीं सकता । उसकी व्याख्या हर कोई अपने अनुसार हर कोई करता है पर वास्तविकता का वर्णन करना कठिन है। अनेक लोग अपने अनुसार भगवान के स्वरूप की व्याख्या करते है। पर सच तो यह है कि उनके स्वरूप का वर्णन कहना और सुनना कठिन है। उनको तो केवल भक्ति से ही धारण किया जा सकता है। परमात्मा का चरित्र वर्णनातीत है और सच्चे भक्त इस बात को जानते हैं पर कहते नहीं है और जो कहते हैं वह जानते नहीं है। अनेक लोग परमात्मा के अनेक स्वरूपों में से हरेक के जीवन चरित्र पर व्याख्या करते हुए अपना ज्ञान बघारते हैं पर सच तो यह है कि यह उनका व्यवसाय है और वह उसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं। उनके वास्तविक स्वरूप को सच्चे भक्त ही जानते हैं पर वह उसका बखान कर अपने अहंकार का प्रदर्शन नहीं करते। अनेक लोग तमाम तरह की खोज का दावा करते हैं तो कुछ लोग कहीं एकांत में तपस्या कर सिद्धि प्राप्त कर फिर समाज में अपना अध्यात्मिक सम्राज्य कायम करने के लिये जुट जाते हैं। ऐसे ढोंगी लोग परमात्मा के स्वरूप का उतना ही बखान करते है जितने से उनका हित और आय का साधन बनता हो।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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प्यार बिकता हैं यहां-हिंदी शायरी



जब भी हम ढूढ़ते हैं अपने लिए प्यार
पर मिलती है सब जगह से दुत्कार
खुद करो चाहे किसी से भी तुम
मांगो न किसी से इसका उपहार
लोग नहीं निकल पाते अपने दिल से
खरीदा और बिकता पैसे से यहाँ प्यार
भाषा में बहुत होते हैं सुन्दर शब्द
पर बोलने में सब लोग हैं लाचार
अपनों में कितना भी तलाशो नहीं मिलता
गैरों भी नहीं मिल सकता जल्दी प्यार
शब्द में होती ढेर सारी शक्ति
पर पैसे से ही लोग देते-लेते प्यार
बेहतर है निकल पड़े अनजाने सफर पर
शायद कहीं मिल जाये प्यार
अपनों की भीड़ में रहकर ऊबने से अच्छा है
अनजाने लोगों के बीच ढूँढें सच्चा प्यार
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दीपक भारतदीप, कवि एवं संपादक