मनुष्य अपने सुख के पल तो एकदम सहजता से गुजार लेता है पर जब दुःख आता है तो भगवान को याद करता है। सच बात तो यह है कि मनुष्य अपने संकटों को स्वयं ही आमंत्रित करता है। कई बार तो ऐसे वाद विवादों को जन्म देता है जिसके मूल में सिवाय अहंकार के कुछ अन्य नहीं होता। हंसी मजाक में झगड़े होते हैं। कुछ पुरुषों की आदत होती है वह अपने साथ वार्तालाप करने वाली स्त्रियों के साथ हंसी मजाक कर अपना दिल बहलाते हैं। वह समझते हैं कि अपने आपको बुद्धिमान साबित कर अपने लिये प्रतिष्ठा अर्जित कर रहे हैं पर होता उसका उल्टा है। उनको लोग हल्का या अगंभीर मानते हैं। कभी कभी इस बात पर झगड़े तक हो जाते हैं।
इस विषय पर संत कबीर कहते हैं कि
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दीपक झोला पवन का, नर का झोला नारि।
साधू झोला शब्द का, बोलै नाहिं बिचारि।।
वायु का झौंका दीपक के लिये भय देने वाला होता है तो नारी का संकट पुरुष के लिये परेशानी का कारण होता है। उसी तरह यदि ठीक से विचार कर शब्द व्यक्त न किया जाये तो वह साधुओं के लिये संकट का कारण बनता है।
पर नारी पैनी छुरी, विरला बांचै कोय।
कबहूं छेड़ि न देखिये, हंस हंसि खावे रोय।
दूसरे आदमी की नारी से कभी कोई हंसी या मजाक न करो क्योंकि वह उस छुरी के समान है जो आदमी को हंसकर या रोकर अंततः काट देती है।
अनेक पुरुष दूसरे की स्त्रियों से वार्तालाप कर अपने मनोरंजन की प्राप्ति करते हैं। यह मनोरंजन अंततः उनको महंगा पड़ता है। देखा तो यह जा रहा है कि आधुनिक समाज में केवल इसी बात पर अनेक झगड़े हो जाते हैं कि किसी ने परस्त्री के साथ मजाक किया। अनेक लोग इस चक्कर में बदनाम हो जाते हैं कि वह परस्त्रियों से अपने संबंध बनाते हैं। ऐसा नहीं है कि समाज में पहले ऐसा नहीं होता था। अगर यह बात होती तो हमारे संत महापुरुष इस बुराई की तरफ प्राचीनकाल से सचेत नहीं करते पर वर्तमान आधुनिक समय में परस्त्रियों से से अश्लील अथवा द्विअर्थी संवाद के साथ वार्तालाप करना एक फैशन हो गया है जो कि देश की सांस्कृतिक परंपराओं के भी विरुद्ध है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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KAFI ACHA LIKHTE HAI AAP , SAMAJ KO SUDHARNE KI EK ACHI SURUAAT KI HAI AAPNE .
Plz more sent me
On 20/01/2013, “** दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका** Mastram
Deepak Bharatdeep’s Hindi express patrika”
बिना पूरे गुरू के कोई भी धार्मिक ग्रन्थ समझ से परे होता है। इसलिए जीवन में गुरू अवश्य धारण करना चाहिए, पूरा गुरू धारण करने पर जीने का ढंग आ जाता है। जीवन का उद्देश्य समझ में आ जाता है कि हम संसार में किसलिए आये हैं और हमारा क्या कर्तव्य है।
Me apne man ki bat aap se kahna chahta hu ki jesa ki Kabir das ji ne kaha ki “Parai naar pe najar mt dalo” ye bilkul sasvat stay h lekin aaj ke is yug me koi ise swikar krne ko hi tyar nhi h iske viprit asi shiksha di jati h ki aap parai naar pe buri najar dalne ko majboor ho jate ho or iska result kya hoga iska nhi sochte, history dekh lo ya present result aapke samne koi bach ke nikl jata h to koi saja pata lekin jo bach ke nikl jata h usko lagta h me bach gya lekin use nhi pta ki aane wale time me kya musibt aayegi wo kabhi soch b nhi skta.