रहीम के दोहे:प्रेम-पथ पर बुद्धिहीन होकर मत चलो


रहिमन मार्ग प्रेम को, मत मतिहीन मझाव
जो डिगिहै तो फिर कहूं, नहिं धरने को पाँव

कविवर रहीम कहते हैं की प्रेम-पथ पर बुद्धिहीन होकर मत चलो। यदि प्रेम में कहीं पग डगमगा गए तो फिर पैर रखने को भी स्थान नहीं मिलेगा।

रहिमन मांगत बडेन की, लघुता होत अनूप
बलि मख मांगत को गए, धरि बावन को रूप

कविवर रहीम कहते हैं की महान पुरुषों की याचना का छोटा रूप भी अनुपम होता है। भगवान ने राजा बलि के यज्ञ में संपूर्ण पृथ्वी को मांगने हेतु केवल बावन अंगुल का स्वरूप धारण किया था।

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