प्रतिदिन कोई न कोई सम्मानीय अपना सम्मान पुराने सामान की तरह बाहर फैंक रहा है। इससे तो यही लगता है जितने साहित्यक सम्मान देश में बांटे गये हैं उससे तो अगले दस वर्ष तक टीवी चैनलों पर रोज सम्मान वापसी की प्रमुख खबर रहने वाली है। खासतौर से विशिष्ट रविवार की सामग्री केवल सम्मान वापसी रहने वाली है। हमारी सलाह है कि अब ज्ञानपीठ तथा अन्य सम्मान सभी भाषाओं के ब्लॉग लेखकों को ही दिया जाना चाहिये जो कभी भी यह वापस नहीं करेंगे और करेंगे तो खबर भी नहीं बनेगी। अंतर्जाल पर भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लॉग लेखक सक्रिय है। वह कैसा लिखते हैं यह तो पता नहीं पर यही स्थिति पुराने सम्मानीय लेखकों की भी है। इनमें से अनेक तो ऐसे हैं जिन्हें अपनी भाषा के लोग भी तब जान पाये जब उन्हें सम्मानित किया गया।
हमारी यह सलाह है कि जिस तरह यह लोग अब फनी-इसका मतलब न पूछिये हमें पता नहीं-हो रहे हैं तो उसका मुकाबला भी उनके फन से होना चाहिये। ब्लॉग भी अब एक किताब की तरह हैं। एक बार सम्मान प्रदान करने वाली संस्था के प्रबंधक भी फनी होकर ब्लॉग लेखकों को ज्ञानीपीठ से सम्मानित कर दें। यही प्रतिक्रियात्मक प्रयास इन पुराने सम्माानीयों के जख्म पर नमक छिड़कने की तरह होगा। एक अध्यात्मिक ज्ञान साधक की दृष्टि से हमारा मानना है कि राजसी कर्म में जस से तस जैसा व्यवहार करना ही चाहिये। कम से कम हिन्दी में अनेक ऐसे ब्लॉग लेखक हैं जिन्हें हम बहुत काबिल मानते हैं। उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान इसलिये भी मिलना चाहिये क्योंकि अंतर्जाल पर हिन्दी उन्हीं की वजह से जमी है। सबसे बड़ी बात यह पुराने सम्मानीय उन्हें दोयम दर्जे का मानते हैं और जब उन्हें ज्ञानपीठ तथा अन्य सम्मान मिलने लगे तो सारी हेकड़ी निकल जायेगी।
हमारा ज्ञानपीठ के लिये कोई दावा नहीं है, यह बात साफ कर देते हैं क्योंकि हमें नहीं लगता कि फन इतना भी स्तरहीन नहीं होना चाहिये कि भन-इसका मतलब भी नहीं पूछिये- लगने लगे। अगर बात जमे तो गहन चिंत्तन करें नहीं तो व्यंग्य समझकर आगे बढ़ जायें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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