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नीचप्रसंङ्गा कुलहीनसेवा चिह्ननि देहे नरकास्थितानाम्।।
‘‘अत्यंत क्रोध करना अति कटु कठोर तथा कर्कश वाणी होना, निर्धनता, अपने ही बंधु बांधवों से बैर करना, नीचों की संगति तथा कुलहीन की सेवा करना यह सभी स्थितियां प्रथ्वी पर ही नरक भोगने का प्रमाण है।’’ गम्यते यदि मृगेन्द्र-मंदिर लभ्यते करिकपोलमौक्तिम्।
जम्बुकाऽऽलयगते च प्राप्यते वत्स-पुच्छ-चर्म-खुडनम्।।
‘‘कोई मनुष्य यदि सिंह की गुफा में पहुंच जाये तो यह संभव है कि वहां हाथी के मस्तक का मोती मिल जाये पर अगर वह गीदड़ की गुफा में जायेगा तो वहां उसे बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़ का टुकड़ा ही मिलता है।’’
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