दूसरे की सोच पर चलकर-हिन्दी शायरी


हम खुली आंखों से सपने देखते रहें,
हम अमन से जियें, जंग के दर्द दूसरे सहें,
कोई करे वादा तो
शिखर पर बिठा देते हैं वोट देकर।

हम खूब कमाकर परिवार संभालें,
दूसरे अपना घर उजाड़ कर, ज़माने को पालें,
कोई दे पक्की गांरटी तो
पीछा छुड़ाते हैं नोट देकर,

शायद नहीं जानते हम कि
शरीर की विलासिता से
खतरनाक है दिमाग का आलसी होना,
बुरा नहीं है किसी के पैसे का कर्ज ढोना,
बनिस्पत
दूसरे की सोच पर चलकर
पहाड़ से खाई में गिरने पर चोट लेकर।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सादगी से कही बात किसी के समझ में नहीं आती-हिंदी शायरी


सादगी से कही बात
किसी को समझ में नहीं आती है
इसलिए शायद कुछ लोग श्रृंगार रस की
चाशनी में डुबो कर सुनाते हैं
अलंकारों में सजाते हैं
तो कुछ वीभत्स के विष से डराते हैं
आदमी में विषय के लिए जिज्ञासा जगाते हैं
आदमी के दिल में ही रहता है
प्यार और खौफ
जिसे कभी कवियों ने बहलाया था
अब तो बाजार में सजी दुकानों पर
दर्द की दवा हो या ख़ुशी के लिए अमृत
हर शय बिकने के लिए सज जाती हैं

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बाज़ार में बिकती है दवा और अमृत-हिंदी शायरी


सादगी से कही बात
किसी को समझ में नहीं आती है
इसलिए शायद कुछ लोग श्रृंगार रस की
चाशनी में डुबो कर सुनाते हैं
अलंकारों में सजाते हैं
तो कुछ वीभत्स के विष से डराते हैं
आदमी में विषय के लिए जिज्ञासा जगाते हैं
आदमी के दिल में ही रहता है
प्यार और खौफ
जिसे कभी कवियों ने बहलाया था
अब तो बाजार में सजी दुकानों पर
दर्द की दवा हो या ख़ुशी के लिए अमृत
हर शय बिकने के लिए सज जाती हैं

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