जिम्मेदारी में कमीशन-हिन्दी कविता (jimmedar aur commision-hindi kavita)


जिम्मेदारी वह सारे समाज की यू ही नहीं उठाते,
मिलता कमीशन, खरीदकर घर का सामान जुटाते।
बह रही  दौलत की नदियां, उनके घर की ओर,
दरियादिल दिखने के लिये, वह कुछ बूंदें भी लुटाते।
न कहीं शिकायत होती, न करता कोई फरियाद
भाग्य का तोहफा समझ सभी अपने हिस्से उठाते।
लग चुकी है ज़ंग लोगों के सोचने के औजारों में
तयशुदा लड़ाई है, खड़े यूं ही हाथ में तलवार घुमाते।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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गृहलक्ष्मी से बड़ा सामान-हिन्दी हास्य कविता (grihalakshmi ka bada saman-hindi hasya kavita


रिश्ते की बात करते हुए
वर पक्ष ने जमकर डींग मारीं
‘हमारे पास अपना आलीशान मकान है,
अपनी बहुत बड़ी दुकान है,
घर में रंगीन टीवी, फ्रिज,ऎसी और
कपडे धोने की मशीन है
रसोई में बनते तमाम पकवान हैं’.
फिर रिश्ता तय होते ही अपनी
मांगों की सूची कन्या पक्ष को थमा दीं
जिसमें तमाम तरह का मांगा था सामान
जैसे उनका बेटा बिकाऊ इन्सान है

कन्या के पिता ने रिश्ते से
इंकार  करते हुए कहा
‘आपके घर में बहु की कमी थी
वही पूरी करने के लिए मैं अपनी
बेटी का हाथ देने को तैयार था
पर मुझे लगता है कि
उसकी आपको कोई जरूरत नहीं
क्योंकि आपकी प्राथमिकता
गृह लक्ष्मी को घर में जगह देने की बजाय
उसके साथ आने वाला सामान है’,
सामानों के होने की ख़ुशी आपको बहुत है
पर किसी की बेटी का आपका घर रोशन हो
ऐसा लगता नहीं आपके दिल को कोई अरमान है.  
————————

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मोम की आस्था-हिन्दी कविता (mom kee astha-hindi poem)


आस्था को कौन गिरा सकता है
विश्वास को कौन तोड़ सकता है,
हृदय में उपस्थित देवताओं को
कौन अपमानित कर सकता है,
जिन इंसानों ने तय कर लिया  है कि
किसी भी तरह ज़माने की हवा बिगाड़ेंगे
आसमान के ख्वाबी फरिश्तों को
ज़मीन पर लाकर रंग निखारेंगे
अपने मतलब के लिये जज़्बातों को
जलता दिखाकर
झौंक देंगे पूरे शहर को  आग में
रहबरों का ही आसरा है उनको
इसलिये बड़ा हुआ है हौंसला
कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है।

उनकी आस्थाएँ मोम की  बनी हैं
जिनके पिघलने पर इसलिए ही 
तूफ़ान मचता है
———
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
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ज़रूरत -हिन्दी कविता (zaroorat-hindi poem)


किसी की पीड़ा को देखकर कब तक
दिखावटी आंसु बहाओगे,
उसे जरूरत इलाज की है,

किसी की बेबसी पर कब तक
अपनी हमदर्दी दिखाओगे
उसे ज़रूरत  सहारे की है,

कब तक तकलीफों से बचने के लिये
किसी को हंसाओगे
उसे जरूरत दिल से मुस्कराने की है,

खाली लफ्जों से इंसान का पेट नहीं भरता
मगर जिन का भरा है
वह भी बैचेनी में जीते हैं
जरूरत तसल्ली की रोटी
और रोटी से तसल्ली की है।
————

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ज़माने में जंग की आग लगाकर-हिन्दी शायरी


बंदूक के सहारे ज़माने में बदलाव
लाने की कोशिश हथियारों के
सौदागरों के दलाल की
चाल लगती है,
खून बहाकर तरक्की के रास्ते
चलने का ख्याल डाकुओं जैसा लगता है,
दुनियां के जिंदा रहने के लिये
कुछ मूर्तियों का टूटना जरूरी है
शैतानों का ख्याल लगता है
दरअसल जिनकी रूह लापता है
अपने ही आपसे
ज़माने में जंग की आग लगाकर
दिल बहलाने में उनका मन लगता है।
—————

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खामोश तूफान-हिन्दी शायरी (khamosh toofan-hindi shayari)


दीवार के उस तरफ
वह आग की तरह उफन रहे हैं
यह सोचकर कि इस पार
पहुंचते ही तिनके को जला डालेंगे।
अंदाज नहीं उनको इस बात का कि
यहां भी कोई खामोश तूफान सांस ले रहा है
यह ख्याल करते हुए कि
हवाओं का रुख पलटा है कई बार
इस बार आग को भी भस्म कर डालेंगे।
———-
थोड़े प्यार की उम्मीद थी
उसे भी न दे सके
लगाई ऊंची कीमत उन्होंने अपनी दोस्ती की
यह सोचकर कि
लाचार को बिचारा बना देंगे।
टूट गया है तिलिस्म उनके विश्वास का
भले ही अपने घमंड का आसरा है उनको
पर जब आकर देखेंगे टूटा दिल
तब अपने ख्याल ही उनको हरा देंगे।
—————

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कवि ने वरदान माँगा -हास्य कविता


कवि की हाजिरी पर प्रसन्न होकर
अपने दरबार में प्रकट हुए सर्वशक्तिमान
और बोले
‘दो में से एक वर मांग ले
पहला इस जन्म में अपनी
कविताओं के हिट होने का वरदान
पर इससे नहीं पैसे के लिहाज से तुम धनवान
या अगले जन्म में किसी प्रकाशक का
चमचा बनकर दौलत कमायेगा
और पायेगा दुनियां भर का सम्मान
पर कविता की नहीं होगी लोगों में शान’
कवि तुरंत बोला-
‘अगर इस जन्म में नहीं अपने नसीब है
कविताऐं तो फ्लाप हम भी गरीब हैं
जितने हिट हैं उतने ही ठीक हैं
अब तो निकल गयी उमर
इसलिये सुरक्षित रख लो
अगले जन्म के लिये अपना वरदान
तब युवावस्था में ही सारी
कामयाबी दिलाना
चमचे बनने की पूरी शक्ति देना
भले ही कविता लिखने की कम कर लेना
साहित्यकारों में करना शुमार
भले ही किसी प्रकाशक का चमचा बना देना
लिखें चाहें जैसा भी पर बढ़ाना सम्मान
किसी हालत में न हो इस जन्म जैसा भान

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पुरुष को बैल बनाने में ही देखते नारी की शान-व्यंग्य ग़ज़ल


लोगों में सोच जगाने के लिये चला रहे सभी अभियान।
किताबों के गुलाम मिटाने निकले हैं गुलामी के निशान।।

नारी स्वतंत्रता का नारा लगाते हुए वह मुस्कराते हैं
गृहस्थी में पुरुष को बैल बनाने में ही देखते नारी की शान।।

पूरी जिंदगी दिखाया समाज को उन्होंने नया रास्ता
अपनी सोच से पैदल रहे,पराये ख्याल पर पाया सम्मान।।

मसीहा बनने की चाहत में ओढ़ लिया अपने आगे अंधेरा
अमन में इधर उधर ढूंढते हैं, जमाने में जंग के पैगाम।।

काट कर लोगों को कर दिया पहले अलग अलग
फिर मांगने निकले है लोगों से एकता का दान।।

कहैं दीपक बापू, बड़े बन गये कई छोटी सोच के कई लोग
चेहरे उनके पर्दे पर चमकते दिखते, पर डोलता लगता ईमान।।

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आजाद होकर भी गुलाम खड़े मालिकों की कृपा के इंतजार में -हास्य व्यंग्य कविताएँ


परदेस में पुजने से ही
देश में भगवान बनेंगे
कैसा यह उनका भ्रम है।
देश के लोगों से मिले मान से
क्या गौरव नहीं बढ़ता जो
बाहर से इनाम लूटने के लिये
दौड़ का नहीं थम रहा क्रम है।

मालिकों ने कर दिया आजाद
पर फिर भी गुलाम खड़े हैं इंतजार में
उनके दरवाजे पर
कृपा में शायद कोई मिल जाये इनाम
तो बढ़े अपने घर में ही सम्मान
सच कहा है
मनुष्य को चलाता है मन उसका
देह की आजादी और गुलामी तो भ्रम है।
…………………………………
परदेस के इनाम लटके हैं
आसमान में
मिलते नहीं इसलिये चमक बरकरार है।
ख्वाब है जब तक बिक जाते है
जज्बात उनके नाम
मिल जाये तो फिर खाक हो जायेंगे
कहा भी जाता है
गुलामों का पेट कभी नहीं भरना चाहिये
भर गया तो आजाद हो जायेंगे
इसलिये परदेसी
पहले इनाम के लिये लपकाते हैं
फिर पीछे हट जाते हैं
देश चलता रहता है
उसकी आड़ में जज्बातोंे का व्यापार
दूर के ढोल सुहावने होते हैं
इसलिये उनको दूर रखो
देशी विदेशी जज्बातों के सौदागरों का
लगता यह कोई आपसी करार है

……………………….
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बाज़ार में खौफ का अफ़साना-हिन्दी शायरी


<strong>कुछ हकीकत कुछ ख्वाव
बन जाता है  यूँ ही अफसाना
सुर्खियों में बने रहें अख़बारों की 
चर्चा करे नाम की पूरा ज़माने
इसलिए कभी वह हादसों को ढूंढते हैं
न मिलें तो कर लेते, आगे होने  का बहाना
जिन्हें आदत हो गयी भीड़ में चमकने की
उनको पसंद नहीं है हाशिये पर आना
लोगों की मस्ती और बेचैनी में ही
आता हैं उनको कमाना
जो चाहो चैन अपनी जिंदगी में
तो कभी उनकी आवाजों से डर मत जाना
उनके लिखे शब्द पढ़ना खूब
पर बहक मत जाना
बाज़ार में अमन की हकीकत नहीं
बिकता है अब खौफ का अफसाना </strong>
————————————
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रौशनी ने भी अपने रूप बदले हैं-हिंदी शायरी


निकले थे अंधेरे में माटी के चिराग ढूंढने
पर कांच के बल्ब के टुकड़े लग गये पांव में
रौशनी ने भी अपने रूप बदले हैं
शहर चमक रहे हैं चकाचौंध में
अंधेरे का घर है गांव में

मधुर स्वर सुनने की चाह में
पहुंच गये महफिल में
पर कान लगने फटने
सभी गाने वाले लगे थे कांव-कांव में

आंखों से देखने की चाह में
निकले रास्ते पर
पर दिखावटी चेहरों को देखकर
हो गये निराश
बनावटी दृश्यों से हो गये हताश
परिश्रम का पसीना बहता है
सूरज की किरणों मे निरंतर
आलस्य पलता है छांव में

फिर सोचते हैं कि
दुनियां के हैं रंग निराले
क्यों करें अपने विचार काले
कुछ लोगों समझते है जिंदगी का मतलब
खुशनुमा पल से जीने के लिये
जहां कुछ भी न मिले
पर दिल का चैन अमन का अहसास ही
सुकून है सब कुछ अपने लिये
पर बाकी के लिये है जूआ
जो खेलते हैं अपने ख्वाबों पर दांव पर दांव

………………………..
क्यों अपना दिल जलाते हो अपना यार
इस दुनियां में होते हैं नाटक अपार

कभी कहीं कत्ल होगा
कहीं कातिल का सम्मान होगा
चीखने और चिल्लाने की आवाजें होंगीं
कुछ लोग सच में रोएंगे
कुछ बहायेंगे घडि़याली आंसु
तुम न कभी नहीं रोना
अपनी रात चैन से सोना
दिल के उजियाले में
दिखाई देते हैं रात के नजारे
लोग भी क्या समझेंगे
सोच रख चुके गुलाम, अब क्या करेंगे
बमों की आवाज से कांप मत जाना
किसने किया इस पर मत दिमाग खपाना
रोटी से ज्यादा लोग रूपया जोड़ते हैं
गैर क्या, मौका पड़ जाय तो
अपने का घर तोड़ते हैं
आंखों की नहीं अक्ल की भी
उनकी रोशनी कम हो गयी है
जो चश्में लगे हैं उनकी आंखों पर
दौलत,शौहरत और ओहदे की शान से बने हैं
मत पूछा यह कि वह अमृत में नहाये कि
खून से सने हैं
खुल गया है
दुनियां के हर जगह बाजार
आतंक यहां भी मिलता है वहां भी
तुम हैरान और परेशान क्यों हो
अपनी अक्ल से सोचो
जो हर पल पैसे का ही सोचते हैं
वह गैर को कम अपने को अधिक नौचते हैं
शिकायत कहां करोगे
जहां जाओगे मरोगे
कातिलों ने दुनियां पर राज्य कायम कर लिया है
खूबसूरत चेहरों को मुखौटे की तरह ओढ लिया है
वह मुस्कराते हुए बात करते हैं
कातिल तो अपना काम पीछे ही करते हैं
देशभक्ति और लोगों के कल्याण का नारा सुनते जाना
खामोशी से सोचना और फिर अनसुना कर जाना
नारों में बह जाते लोग
भूल जाते अपना असली रोग
जमाने र्की िफक्र बात में करना
ओ सबकी सोचने वाले यार
सरकारी अस्पताल में डाक्टर ने जो
बताई है जो महंगी दवा
तुम्हारी मां के लिये
वह पहले खरीद करना
क्योंकि उसका कोई विकल्प नहीं है
पिता है बिस्तर पर कई सालों से
उसे भी ले जाना अस्पताल
बेटे के लिये रोजगार के लिये भी
चलना है कोई चाल
जीवन में कोई समस्या अल्प नहीं है
जो देते हैं तुम्हें समाज के लिये
हमेशा काम करने का संदेश
उनके लिये अपने घर बड़े हैं न कि देश
तुम मत करना विरोध किसी का
हां में हां करते जाना
जहां अवसर मिल जाये लाभ उठाना
चिल्लाना बिल्कुल नहीं
खामोशी में ही सबसे अधिक है धार

…………………………….

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कतरनों में मनोरंजन -हास्य कविताऐं


बेच रहे हैं मनोरंजन
कहते हैं उसे खबरें
भाषा के शब्दकोष से चुन लिए हैं
कुछ ख़ास शब्द
उनके अर्थ की बना रहे कब्रें
परदे पर दृश्य दिखा रहे हैं
और साथ में चिल्ला रहे हैं
अपनी आँख और कान पर भरोसा नहीं
दूसरों पर शक जता रहे हैं
इसलिए जुबान का भी जोर लगा रहे हैं
टीवी पर कान और आँख लगाए बैठे हैं लोग
मनोरंजन की कतरनों में ढूँढ रहे खबरें
——————————–
चीखते हुए अपनी बात
क्यों सुनाते हो यार
हमारी आंख और कान पर भरोसा नहीं है
या अपने कहे शब्द घटिया माल लगते हैं
जिसका करना जरूरी हैं व्यापार

———————————

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अर्थ होता है पढने वाले की नीयत जैसा-हिन्दी शायरी


लिखते लिखते कविता सड़ जाती है
न लिखो तो दिमाग में जड़ हो जाती है
शब्द बोलो तो कोई सुनता नहीं
कान है यहाँ तो, ख्याल है अन्यत्र कहीं
अपने जुबान से निकले शब्द अर्थहीन लगते हैं
अनसुने होकर अपने को ही ठगते हैं
सडांध लगती हैं अपने आसपास
इसलिए नीयत कविता लिखने को मचल जाती हैं

लिखा हुआ सड़ जाए
या सडा हुआ लिखा जाए
पर लिखा शब्द अपनी अस्मिता नहीं खोता
पढने वाले पढ़ें
न पढने वाले न पढ़े
अर्थ होता है पढने वाले की नीयत जैसा
कविता भी वैसी, कवि भी वैसा
जमाने भर की दुर्गन्ध अपने अन्दर
बनी रहे
उसे अच्छा है शब्दों को फूल की तरह बिखेर दो
शायद फ़ैल जाए उनसे सुगंध
वैसे ही क्या कम है लोगों के मन में दुर्गन्ध
अगर सडा हुआ लिखा गया
या लिखा सड़ गया, क्या फर्क पड़ता है
फ़िर भी कविता में कभी कभी
अपने जीवंत रहने की अनुभूति तो नज़र आती है

————————————————-
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अपनी-अपनी सब कहैं-हास्य व्यंग्य कवितायें


किस्से कहें और
क्या कहें
सुनते सभी हैं
पर गुनते नजर नहीं आते
कान से सुनते सभी हैं
पर मन के बहरे सभी हैं
——————

अपने मन की बात
किसी से कहें तो क्या
पहले तो कान न धरे
और धरे तो बनाए मजाक
कहें दीपक बापू
कान से बहरे तो ठीक
मन के बहरों के आगे
क्या बीन बजाना
दुसरे उडाएं
इससे तो अपने पर ही
हंस कर अपना उडायें मजाक
—————–

मस्तिष्क से विचारों और अंतर्द्वंद्वों
बीच हाथों से रचे जाते शब्द
मेरे मन की पीडा हर जाते हैं
सोचता हूँ
अब आराम से बैठ पाऊँगा
पर ऐसा होता नहीं
पीडाओं के झुंड अपने साथ शब्दों को लेकर
एक-एक कर फिर मस्तिष्क में
तेजी से चलते आते हैं

कई बार सोचता हूँ
लिखना बंद कर दूं
विचारों और अंतर्द्वंदों से
किनारा कर लूं
बोतल से निकलते जिन्न से
फिर दोस्ती कर लूं
मदहोशी में रहना सीख लूं
पर जब गुजरे पल याद आते हैं
पीडा और बढ़ा देते हैं
फिर शब्दों के झुंड चले आते हैं
मेरे हाथ जिन्न की बोतल से दूर
फिर लिखने के लिए बढ जाते हैं

मैं जितना दूर जाना चाहूँ
अपने शब्दों से
उनके पढने वाले
मुझे याद दिलाने चले आते हैं
कहते हैं वह तुम्हारे शब्द
हमारी पीडा हर जाते हैं
क्योंकि वह सत्य के निकट
नजर आते हैं

मैं नहीं जानता कि
यह सच है या झूठ
बस इतना पता है कि
वह मेरी पीडा को हर ले जाते हैं
जब तक नहीं निकलते
मन को बहुत सताते हैं
——————–

लिखते बहुत हैं
अपने लिखे शब्द से पूजते भी बहुत हैं
अपनी नहीं बल्कि परपीडा पर
निरर्थक और अपठनीय लिखकर
स्तुति भी बहुत पाते हैं
पर लेखक की खुद की
पीडा से निकले शब्द
मेरी दृष्टि में साफ नजर आते हैं

पढने को तरसता हैं मन मेरा
पर सुन्दर कागज पर
रंग-बिरंगी स्याही से सजे शब्द
मेरे पठन-पाठन की क्षुधा को
तृप्त नहीं कर पाते हैं
सोचता हूँ कि
क्या लोगों की पीडा कम हो गयी है
पर देखता हूँ अपने आसपास तो
लगता है कि अब लिखते अब वह हैं
जिनके पास आज के युग के
सारे साधन है और वह
संवेंदनहीन होकर दूसरों की पीडा
अपने शब्दों को सजाते हैं
इसीलिये दिल को छू नहीं पाते हैं

हृदय में अच्छा न पढ़ पाने की पीडा
लिखने से दूर कर देती है
सोचता हूँ अपने शब्द-लेखन से
कहीं दूर हो जाऊं
बिना पढे मैं कब तक लिखता जाऊं
पर शब्द और बोतल में बंद जिन्न के
बीच मैं खङा होकर सोचता हूँ
मुझे किसी एक रास्ते पर तो जाना होगा
और शब्द हैं कि झुंड के झुंड
पीडाओं को साथ लिए चले आते हैं
मुझे अपने साथ खींच ले जाते हैं
———————–

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पढ़कर कितना समझते-हास्य हिन्दी शायरी


आम इंसानों की तरह
रोज जिंदगी गुजारते हैं
पर आ जाता है
पर सर्वशक्तिमान के दलाल
जब देते हैं संदेश
अपना ईमान बचाने का
तब सब भूल जाते हैं
दिल से इबादत तो
कम ही करते हैं लोग
पर उसके नाम पर
जंग करने उतर आते हैं
कौन कहता है कि
दुनियां के सारे धर्म
इंसान को इंसान की
तरह रहना सिखाते
ढेर सारी किताबों को
दिल से इज्जत देने की बात तो
सभी यहां करते हैं
पर उनमें लिखे शब्द कितना पढ़ पाते हैं
पढ़कर कितना समझते
इस पर बहस कौन करता है
दूसरों की बात पर लोग
एक दूसरे पर फब्तियां कसने लग जाते हैं।
…………………………………

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प्रेमपत्र लिखने का युग बीत गया-हास्य व्यंग्य कविता


जैसे ही कवि ने कहा
”अब मैं आपको अपनी नई कविता
‘प्यार भरा ख़त’ सुनाऊंगा
लिफाफे के रंग का असर भी बताऊंगा
आप ज़रा गौर फ़रमाएँ “
यह सुनते ही दर्शकों में शोर मच गया
एक चिल्ला कर बोला-
“अभी भी कुछ कवि उन्नीसवीं सदी में जी रहे हैं
चंद पुरानी कविताओं के सहारे अभी तक
शेम्पेन पी रहे हैं
कब का ख़त्म हो गया ख़त का ज़माना
लिफाफे में जो लिखते थे ख़त जो प्रेमी
वह बन गए अब नानी और नाना
आजकल इश्क के लिए ईमेल और
मोबाइल पर एस.एम्.एस.ही
पर संदेशों का मिलता है खजाना
कृपया कवि महोदय घर जाएँ
पहले इन्टरनेट पर चाट करें
कोई छद्म नाम धरकर किसी
नवयौवना से इश्क का अभ्यास करें
फिर कोई नयी कविता लिखकर लायें
नहीं समझ में आया तो
हम सडे टमाटर और अंडे बरसायें
———————–

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