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शायरी
तोहफों के जाल में प्यार-हिन्दी व्यंग्य कविता (love and gift-hinci satire poem)
अब प्यार जताने का सिलसिला
तोहफों से चलने लगा है,
इसलिये आदमी तोहफे देकर
हर इंसान प्यार खरीदने लगा है।
तोहफों की कीमत जितनी बढ़ेगी,
प्यार की ऊंचाई भी उतनी लगेगी,
नजरों का दोष है कि दिल का
प्यार जाहिर करने की ख्वाहिशों के आगे
हर तोहफा सस्ता लगने लगा है,
मगर मजबूरी है
बिना तोहफे के प्यार खाली लगने लगा है।
मुश्किल यह है कि
प्यार दिखाने के लिये तोहफा खरीदने वास्ते
कब तक पतंग की तरह
इधर उधर उड़ते रहें,
कीमत चुकाने के लिये
कमाने के दर्द कब तक सहें,
सरलता से किया जाने वाला प्यार
तोहफों के जाल में फंसने लगा है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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फरिश्तों का सम्मेलन -हिन्दी व्यंग्य कविता (sammelan-hindi satire poem
अब संभव नहीं है
कोई कर सके
सागर का मंथन
या डाले हवाओं पर बंधन।
इसलिये नये फरिश्ते इस दुनियां के
रोकना चाहते हैं
जहरीली गैसों का उत्सर्जन
जिसे छोड़ते जा रहे हैं खुद
समंदर से अधिक खारे
विष से अधिक विषैले
नीम से अधिक कसैले अपनी
उन फरिश्तों ने महफिल सजाने के लिये
ढूंढ लिया है कोपेनहेगन।।
——–
वह समंदर मंथन कर
अमृत देवताओं को देंगे
ऐसे दैत्य नहीं हैं।
पी जायें विष ऐसे शिव भी नहीं हैं।
कोपेनहेगन में मिले हैं
इस दुनियां के नये फरिश्ते,
गिनती कर रहे हैं
एक दूसरे द्वारा फैलाये विष के पैमाने की,
अमृत न पायेंगे न बांटेंगे,
बस एक दूसरे के दोष छाटेंगे,
धरती की शुद्धि तो बस एक नारा है
उनके हृदय का भाव खारा है,
क्या करें इसके सिवाय वह लोग
सारा अमृत पी गये पुराने फरिश्ते
अब तो विष ही हर कहीं है।।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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कवि ने वरदान माँगा -हास्य कविता
कवि की हाजिरी पर प्रसन्न होकर
अपने दरबार में प्रकट हुए सर्वशक्तिमान
और बोले
‘दो में से एक वर मांग ले
पहला इस जन्म में अपनी
कविताओं के हिट होने का वरदान
पर इससे नहीं पैसे के लिहाज से तुम धनवान
या अगले जन्म में किसी प्रकाशक का
चमचा बनकर दौलत कमायेगा
और पायेगा दुनियां भर का सम्मान
पर कविता की नहीं होगी लोगों में शान’
कवि तुरंत बोला-
‘अगर इस जन्म में नहीं अपने नसीब है
कविताऐं तो फ्लाप हम भी गरीब हैं
जितने हिट हैं उतने ही ठीक हैं
अब तो निकल गयी उमर
इसलिये सुरक्षित रख लो
अगले जन्म के लिये अपना वरदान
तब युवावस्था में ही सारी
कामयाबी दिलाना
चमचे बनने की पूरी शक्ति देना
भले ही कविता लिखने की कम कर लेना
साहित्यकारों में करना शुमार
भले ही किसी प्रकाशक का चमचा बना देना
लिखें चाहें जैसा भी पर बढ़ाना सम्मान
किसी हालत में न हो इस जन्म जैसा भान
……………………………………..
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आजाद होकर भी गुलाम खड़े मालिकों की कृपा के इंतजार में -हास्य व्यंग्य कविताएँ
परदेस में पुजने से ही
देश में भगवान बनेंगे
कैसा यह उनका भ्रम है।
देश के लोगों से मिले मान से
क्या गौरव नहीं बढ़ता जो
बाहर से इनाम लूटने के लिये
दौड़ का नहीं थम रहा क्रम है।
मालिकों ने कर दिया आजाद
पर फिर भी गुलाम खड़े हैं इंतजार में
उनके दरवाजे पर
कृपा में शायद कोई मिल जाये इनाम
तो बढ़े अपने घर में ही सम्मान
सच कहा है
मनुष्य को चलाता है मन उसका
देह की आजादी और गुलामी तो भ्रम है।
…………………………………
परदेस के इनाम लटके हैं
आसमान में
मिलते नहीं इसलिये चमक बरकरार है।
ख्वाब है जब तक बिक जाते है
जज्बात उनके नाम
मिल जाये तो फिर खाक हो जायेंगे
कहा भी जाता है
गुलामों का पेट कभी नहीं भरना चाहिये
भर गया तो आजाद हो जायेंगे
इसलिये परदेसी
पहले इनाम के लिये लपकाते हैं
फिर पीछे हट जाते हैं
देश चलता रहता है
उसकी आड़ में जज्बातोंे का व्यापार
दूर के ढोल सुहावने होते हैं
इसलिये उनको दूर रखो
देशी विदेशी जज्बातों के सौदागरों का
लगता यह कोई आपसी करार है
……………………….
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रौशनी ने भी अपने रूप बदले हैं-हिंदी शायरी
निकले थे अंधेरे में माटी के चिराग ढूंढने
पर कांच के बल्ब के टुकड़े लग गये पांव में
रौशनी ने भी अपने रूप बदले हैं
शहर चमक रहे हैं चकाचौंध में
अंधेरे का घर है गांव में
मधुर स्वर सुनने की चाह में
पहुंच गये महफिल में
पर कान लगने फटने
सभी गाने वाले लगे थे कांव-कांव में
आंखों से देखने की चाह में
निकले रास्ते पर
पर दिखावटी चेहरों को देखकर
हो गये निराश
बनावटी दृश्यों से हो गये हताश
परिश्रम का पसीना बहता है
सूरज की किरणों मे निरंतर
आलस्य पलता है छांव में
फिर सोचते हैं कि
दुनियां के हैं रंग निराले
क्यों करें अपने विचार काले
कुछ लोगों समझते है जिंदगी का मतलब
खुशनुमा पल से जीने के लिये
जहां कुछ भी न मिले
पर दिल का चैन अमन का अहसास ही
सुकून है सब कुछ अपने लिये
पर बाकी के लिये है जूआ
जो खेलते हैं अपने ख्वाबों पर दांव पर दांव
………………………..
क्यों अपना दिल जलाते हो अपना यार
इस दुनियां में होते हैं नाटक अपार
कभी कहीं कत्ल होगा
कहीं कातिल का सम्मान होगा
चीखने और चिल्लाने की आवाजें होंगीं
कुछ लोग सच में रोएंगे
कुछ बहायेंगे घडि़याली आंसु
तुम न कभी नहीं रोना
अपनी रात चैन से सोना
दिल के उजियाले में
दिखाई देते हैं रात के नजारे
लोग भी क्या समझेंगे
सोच रख चुके गुलाम, अब क्या करेंगे
बमों की आवाज से कांप मत जाना
किसने किया इस पर मत दिमाग खपाना
रोटी से ज्यादा लोग रूपया जोड़ते हैं
गैर क्या, मौका पड़ जाय तो
अपने का घर तोड़ते हैं
आंखों की नहीं अक्ल की भी
उनकी रोशनी कम हो गयी है
जो चश्में लगे हैं उनकी आंखों पर
दौलत,शौहरत और ओहदे की शान से बने हैं
मत पूछा यह कि वह अमृत में नहाये कि
खून से सने हैं
खुल गया है
दुनियां के हर जगह बाजार
आतंक यहां भी मिलता है वहां भी
तुम हैरान और परेशान क्यों हो
अपनी अक्ल से सोचो
जो हर पल पैसे का ही सोचते हैं
वह गैर को कम अपने को अधिक नौचते हैं
शिकायत कहां करोगे
जहां जाओगे मरोगे
कातिलों ने दुनियां पर राज्य कायम कर लिया है
खूबसूरत चेहरों को मुखौटे की तरह ओढ लिया है
वह मुस्कराते हुए बात करते हैं
कातिल तो अपना काम पीछे ही करते हैं
देशभक्ति और लोगों के कल्याण का नारा सुनते जाना
खामोशी से सोचना और फिर अनसुना कर जाना
नारों में बह जाते लोग
भूल जाते अपना असली रोग
जमाने र्की िफक्र बात में करना
ओ सबकी सोचने वाले यार
सरकारी अस्पताल में डाक्टर ने जो
बताई है जो महंगी दवा
तुम्हारी मां के लिये
वह पहले खरीद करना
क्योंकि उसका कोई विकल्प नहीं है
पिता है बिस्तर पर कई सालों से
उसे भी ले जाना अस्पताल
बेटे के लिये रोजगार के लिये भी
चलना है कोई चाल
जीवन में कोई समस्या अल्प नहीं है
जो देते हैं तुम्हें समाज के लिये
हमेशा काम करने का संदेश
उनके लिये अपने घर बड़े हैं न कि देश
तुम मत करना विरोध किसी का
हां में हां करते जाना
जहां अवसर मिल जाये लाभ उठाना
चिल्लाना बिल्कुल नहीं
खामोशी में ही सबसे अधिक है धार
…………………………….
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कतरनों में मनोरंजन -हास्य कविताऐं
बेच रहे हैं मनोरंजन
कहते हैं उसे खबरें
भाषा के शब्दकोष से चुन लिए हैं
कुछ ख़ास शब्द
उनके अर्थ की बना रहे कब्रें
परदे पर दृश्य दिखा रहे हैं
और साथ में चिल्ला रहे हैं
अपनी आँख और कान पर भरोसा नहीं
दूसरों पर शक जता रहे हैं
इसलिए जुबान का भी जोर लगा रहे हैं
टीवी पर कान और आँख लगाए बैठे हैं लोग
मनोरंजन की कतरनों में ढूँढ रहे खबरें
——————————–
चीखते हुए अपनी बात
क्यों सुनाते हो यार
हमारी आंख और कान पर भरोसा नहीं है
या अपने कहे शब्द घटिया माल लगते हैं
जिसका करना जरूरी हैं व्यापार
———————————
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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महामशीन भी कैसे महादानव बन जायेगी-हास्य कविता
बहुत शोर सुना था
महामशीन बन जायेगी
महादानव और
पूरी धरती काले छेद में घुस जायेगी
ऐसा नहीं होना था, नहीं हुआ
क्योंकि हाड़मांस की दानव भी
भस्मासुर जैसे महादानव तभी बनते थे
जब करते थे भारी तपस्या
इंसानी फितरत से बने लोहे के ढांचे का क्या
जो दुनियां ढह जायेगी
देवता तो वह इंसान स्वयं नहीं बनता
महादानव की कल्पना भी भला
कैसे साकार हो पायेगी
यारों, शोर चाहे जितना मचा लो
तपस्या से ही बनता है महान
देवता हो या दानव
भूल जाता है यह बात मानव
बिना तप के केवल
कल्पना तो कल्पना ही रह जायेगी
……………………………
यह पाठ/कविता इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप