तुम मोबाइल भाई बन जाओ-हास्य कविता hasya vyangya


सास ने कहा बहू से
‘देखो, आज है राखी का दिन
सब बहनों को भाईयों से निभाना
तुम जल्दी भाई को जाकर राखी बांधकर
लौट आओ
फिर पूरा घर है तुम्हें संभालना
फिर मुझे अपने भाई के घर है जाना
वहीं होगा मेरा आज खाना
पीछे से तुम्हारी ननद आयेगी
उसके लिये जल्दी भोजन बनाना
वह लौट जायेगी
फिर उसकी ननद अपने मायके
भाई को राखी बांधने आयेगी
फिर वह भी लौट जायेगी
ज्यादा लंबा क्या खींचूं इस तरह
सभी की ननदें बहुऐं का कर्तव्य भी निभाऐंगी
बाकी तुम सब स्वयं ही समझ जाना’

बहू ने कहा
‘मैं तो अपने भाई को मोबाइल पर ही
कह देती हूं कि मैं तो ट्रांसमीटर की तरह
खड़ी हूं तुम मोबाइल भाई बन जाओ
यहीं राखी बंधवाने आ जाओ
मैं आई तो ससुराल के रक्षाबंधन का
दूर तक फैला लिंक टूट जायेगा
टूट पड़ेगा मुझ पर जमाना
वैसे भी मां ने कहा है
बेटी, आजकल बेदर्द हैं लोग
सभी को है दिखावे का रोग
मुश्किल है बहु का कर्तव्य निभाना
फिर भी सास की हर बात को
चुपचाप मानती जाना
आप तो बेफिक्र होकर मायके जाओ
चाहे जब आओ
मेरा भाई जानता है
राखी के कच्चे बंधनों को पक्का बनाना
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वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये-हिंदी कविता


जिनको माना था सरताज
वह असलियत में सियार निकल आये
भरोसा किया था जिन पर
वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये
उनके लिये लड़ते हुए थकेहारे
सब कुछ गंवा दिया
इसलिये हम कसूरवार कहलाये
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अपनी जिंदगी के राज किसको बतायें
अपने गमों से बचने के लिये सब मजाक बनायें
टूटे बिखरे मन के लोगों का समूह है चारों तरफ
किसके आसरे अपना जहां टिकायें
बेहतर है खुद ही अपने पीर बन जायें
आकाश में बैठे सर्वशक्तिमान को किसने देखा
और कौन समझ पाया
फिर जब दूसरे बन जाते है पहुंचे हुए
तो हम खुद क्यों पीछे रह जायें

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