मोम की आस्था-हिन्दी कविता (mom kee astha-hindi poem)


आस्था को कौन गिरा सकता है
विश्वास को कौन तोड़ सकता है,
हृदय में उपस्थित देवताओं को
कौन अपमानित कर सकता है,
जिन इंसानों ने तय कर लिया  है कि
किसी भी तरह ज़माने की हवा बिगाड़ेंगे
आसमान के ख्वाबी फरिश्तों को
ज़मीन पर लाकर रंग निखारेंगे
अपने मतलब के लिये जज़्बातों को
जलता दिखाकर
झौंक देंगे पूरे शहर को  आग में
रहबरों का ही आसरा है उनको
इसलिये बड़ा हुआ है हौंसला
कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है।

उनकी आस्थाएँ मोम की  बनी हैं
जिनके पिघलने पर इसलिए ही 
तूफ़ान मचता है
———
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

हिन्दी साहित्य,समाज,संदेश,मनोरंजन,मस्ती,मस्त राम,hindi literture,hindi sahitya,hindi poem,hindi kavita,raharon ka aasra,astha,vishvas,dil ke devata

Advertisement

हादसे और सर्वशक्तिमान का दरब़ार-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (hadsa aur darbar-hindi vyangya kavitaen)


अब तो हादसों के इतिहास पर भी
सर्वशक्तिमान के दरबार बनते हैं,
जिनके पास नहीं रही देह
उन मृतकों के दर्द को लेकर
जिंदगी के गुढ़ रहस्य को जो नहीं जानते
वही उफनते हैं,
जज़्बातों के सौदागरों ने पहन लिया
सर्वशक्तिमान के दूत का लबादा,
भस्म हो चुके इंसानों के घावों की
गाथा सुना सुनाकर
करते हैं आम इंसानों से दर्द का व्यापार
क्योंकि उनके महल ऐसे ही तनते हैं।
————
इंसानों को दर्द से जड़ने का जज़्बा
भला वह अक्लमंद क्या सिखायेंगे,
जो हादसों में मरों के लिये झूठे आंसु बहाकर,
सर्वशक्तिमान के दरबार सजाकर
लोगों का अपना दर्द दिखायेंगे,
यह अलग बात है कि उनके भौंपू
उनका नाम इतिहास में
सर्वशक्तिमान के दूत की तरह लिखायेंगे।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

खुल गयी प्यार की पोल-हिन्दी हास्य कविता(khul gayi pyar ki pol-hindi haysa kavita)


आशिक ने कहा माशुका से
‘‘मुझसे पहले भी बहुत से आशिकों ने
अपनी माशुकाओं के चेहरे की तुलना
चांद से की होगी,
मगर वह सब झूठे थे
सच मैं बोल रहा हूं
तुम्हारा चेहरा वाकई चांद की तरह है खूबसूरत और गोल।’’

सुनकर माशुका बोली
‘‘आ गये अपनी औकात पर
जो मेरी झूठी प्रशंसा कर डाली,
यकीनन तुम्हारी नीयत भी है काली,
चांद को न आंखें हैं न नाक
न उसके सिर पर हैं बाल
सूरज से लेकर उधार की रौशनी चमकता है
बिछाता है अपनी सुंदरता का बस यूं ही जाल,
पुराने ज़माने के आशिक तो
उसकी असलियत से थे अनजान,
इसलिये देते थे अपनी लंबी तान,
मगर तुम तो नये ज़माने के आशिक हो
अक्षरज्ञान के भी मालिक हो,
फिर क्यूं बजाया यह झूठी प्रशंसा का ढोल,
अब अपना मुंह न दिखाना
खुल गयी तुम्हारी पोल।’’
———–

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

रहस्य-हिन्दी शायरी


दौलत, शौहरत और ताकत का नशा
भले चंगे को रास्ते से भटका देता है,
शिखर पर पहुंचे हैं जो दरियादिल
उनसे जज़्बाती हमदर्दी का उम्मीद करना
बेकार है,
क्योंकि हो जाते हैं उनके सपने पूरे
पर दर्द के अहसास मर जाते हैं।

हाथ फैलायें खड़े हैं नीचे
उनसे दया की आशा करने वाले
कल यदि वह भी
छू लें आकाश तो
वैसे ही हो जायेंगे,
इस दुनियां में चलती रहेगी यह अनवरत जंग
मगरमच्छ के आहार के लिये
मछलियों को पालता है समंदर,
शिकार और शिकारी
शोषक और शोषित
और स्त्री पुरुष दोनों का होना जरूरी है शायद
सर्वशक्तिमान का रहस्य हम कहां समझ पाते हैं।
————–

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

नये वर्ष का कबाड़ा-हिन्दी लघु व्यंग कथा (new year after on day-hindi satire


 वह दोनों लड़के हमेशा की तरह उस कालोनी में घर से बाहर पड़े कूड़े और और चौराहे पर रखे कूड़ेदानों से बेचने लायक कबाड़ छांट रहे थे।  पास से जाते हुए दो लोगों में से किसी एक को उन्होंने कहते सुना कि‘ कल से नया वर्ष 2010 लग रहा है।  आज पुराने वर्ष 2009 का अंतिम दिन है।’ देखें अगला वर्ष स्वयं को फलता है कि नहीं!

दूसरे ने कहा-‘काहे का नया वर्ष। सब पैसे वालों को चौंचले हैं।’

लड़कों ने यह सुना। एक खुश होकर बोला-‘यार, कल तो बहुत सारा माल मिलेगा। लोग तमाम तरह के सामान लाकर उसके पुट्ठे, कागज़ और पनियां बाहर फैंकेंगे। अपना भी नया साल शुरु होगा जब माल मिल जायेगा।’

दूसरे ने कहा-‘नहीं, अपना नया साल तो एक दिन बाद यानि परसों से शुरु होगा। कल तो लोग खाने पीने और तोहफे के लेनदेन का सामान लायेंगे। उनके ग्रीटिंग कार्ड वगैरह कम से कम एक दिन तो घर में मेहमानी तो करेंगे ही न! उनका जब नया साल एक या दो दिन पुराना होगा तब हमारा शुरु होगा।’

दूसरा निराश नहीं हुआ-‘कोई बात नहीं! एक दिन या दो दिन बाद ही नये साल का कबाड़ हमें मिलेगा तो जरूर न!

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

पुरुष को बैल बनाने में ही देखते नारी की शान-व्यंग्य ग़ज़ल


लोगों में सोच जगाने के लिये चला रहे सभी अभियान।
किताबों के गुलाम मिटाने निकले हैं गुलामी के निशान।।

नारी स्वतंत्रता का नारा लगाते हुए वह मुस्कराते हैं
गृहस्थी में पुरुष को बैल बनाने में ही देखते नारी की शान।।

पूरी जिंदगी दिखाया समाज को उन्होंने नया रास्ता
अपनी सोच से पैदल रहे,पराये ख्याल पर पाया सम्मान।।

मसीहा बनने की चाहत में ओढ़ लिया अपने आगे अंधेरा
अमन में इधर उधर ढूंढते हैं, जमाने में जंग के पैगाम।।

काट कर लोगों को कर दिया पहले अलग अलग
फिर मांगने निकले है लोगों से एकता का दान।।

कहैं दीपक बापू, बड़े बन गये कई छोटी सोच के कई लोग
चेहरे उनके पर्दे पर चमकते दिखते, पर डोलता लगता ईमान।।

………………………………

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप