प्यार बिकता हैं यहां-हिंदी शायरी



जब भी हम ढूढ़ते हैं अपने लिए प्यार
पर मिलती है सब जगह से दुत्कार
खुद करो चाहे किसी से भी तुम
मांगो न किसी से इसका उपहार
लोग नहीं निकल पाते अपने दिल से
खरीदा और बिकता पैसे से यहाँ प्यार
भाषा में बहुत होते हैं सुन्दर शब्द
पर बोलने में सब लोग हैं लाचार
अपनों में कितना भी तलाशो नहीं मिलता
गैरों भी नहीं मिल सकता जल्दी प्यार
शब्द में होती ढेर सारी शक्ति
पर पैसे से ही लोग देते-लेते प्यार
बेहतर है निकल पड़े अनजाने सफर पर
शायद कहीं मिल जाये प्यार
अपनों की भीड़ में रहकर ऊबने से अच्छा है
अनजाने लोगों के बीच ढूँढें सच्चा प्यार
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यह इस मूल रूप से इस ब्लाग दीपक भारतदीप की अनुभूति पत्रिका पर प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं दी गयी है।
दीपक भारतदीप, कवि एवं संपादक

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