विदुरनीति-अपनी शक्ति से अधिक वस्तु की कामना करना तकलीफदेह


                  फिल्म और टीवी धारावाहिकों पर अनेक तरह के ऐसे कार्यक्रम प्रसारित होते हैं जिनकी कहानियों का कोई सिर पैर नहीं होता। स्थिति यह है कि टीवी में धनाढ्य वर्ग की पृष्ठभूमि पर आधारित कार्यक्रमों में उनके सानिध्य में पल रहे नौकर पात्रों की वेशभूषा भी अत्यंत महंगी होती है। कई बार तो ऐसा होता है कि किसी पात्र को अपनी जिंदगी से परेशान हाल दिखाया जाता है पर उसके हर पल बदलते कपड़े इस बात को प्रमाणित नहीं करते कि वह वाकई परेशान हाल समाज का प्रतिबिंब है। यह अलग बात है कि यह सब दिखाने वाले साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए अपनी कहानियों के प्रमाणिक होने का दावा करते हैं। हमारे देश के अनेक अभिनेता गरीब से उठकर अमीर बनने की कहानियों को अपने नायकत्व से सुसज्जित कर महानायक बन गये हैं। अनेक तो शताब्दी के नायक और महानायक की छवि बना चुके हैं। मगर यह सब कल्पित कहानियों के पात्र हैं। उनमें समाज की सत्यता देखना स्वयं को तकलीफ देना है।
          समाज का सच यह है कि हमारे यहां जड़तावाद फैला है। वंशवाद इस तरह बढ़ा है कि कोई विरला ही होता है जो अपने बल, पराक्रम तथा कौशल से शून्य से शिखर पर पहुंचता है। चाटुकारिता की वजह से बस इतनी सफलता मिलती है कि शिखर पुरुष की चरणवंदना करते हुए समाज देख सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम प्रचार माध्यमों में जिस तरह का वातावरण देखते हैं वह प्रायोजित है और आम इंसान का ध्यान बंटाने के लिये है जिससे वह विद्रोह की प्रवृत्तियों से दूर रहे और समाज यथारूप से स्थित रहे। भौतिक परिवर्तन आयें पर उससे शिखर पुरुषों के परिवार की रक्षा होती रहे।
               विदुर नीति में कहा गया है कि

               ————–

              द्वाविमौ कपटकी तीक्ष्णौ शरीरपरिशोधिणौ।

                 यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यस्यनीश्वरः।।

              ‘‘गरीब मनुष्य जब अपने पास उपलब्ध धन से अधिक मूल्यवान वस्तु की कामना करता है और अस्वस्थ या कमजोर होने पर क्रोध की शरण लेता है तब वह अपने ही शरीर को सुखाने का काम करता है।’’

द्वावम्भसि निचेष्टच्यौ गलै बध्वा दृढां शिलाम्।

धनवन्तमदातारं दरिद्र चापस्विनम्।।

‘‘मनुष्य धन होने पर दान न करे और गरीब होने पर कष्ट सहन न कर सके उसे गले में पत्थर मजबूत पत्थर बांधकर पानी में डुबा देना चाहिए।’’

           इसलिये जहां तक हो सके मनोरंजन के लिये बने इस तरह के कार्यक्रम देखें पर उनको दिल और दिमाग में इस तरह न स्थापित होने दें कि पूरा समय कल्पना में खोकर अपना जीवन नष्ट कर डालें। मूल बात यह है कि हमें अपने चरित्र पर दृढ़ रहना चाहिए। अपने अंदर यह आत्मविश्वास होना चाहिए कि जैसी भी स्थिति हमारे सामने आयेगी उससे निपट लेंगे। यह दुनियां पल पल रंग बदलती है और अगर कभी भूख है तो कभी रोटी का अंबार भी लग सकता है। कभी प्यास है तो सामने शीतल जल का तालाब भी आ सकता है। इसलिये छल, कपट या चाटुकारिता से सफलता प्राप्त कर अपने लिये संकट को आमंत्रण नहीं देना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
Advertisement

प्रजा का शोषण करने से राजा की शक्ति क्षीण होती हैं-हिन्दू धार्मिक विचार


      शरीरकर्षणात्प्राणाः क्षीयन्ते प्राणिनां यथा।
तथा राज्ञामपि प्राणाः क्षीयन्ते राष्ट्रकर्षणात्।।

          “जिस प्रकार शरीर को भोजन पानी न देकर उसका शोषण करने से उसकी प्राणशक्ति कमजोर हो जाती है उसी तरह राष्ट्र या प्रजा का शोषण करने से राजा की प्राणशक्ति कमजोर हो जाती है।”

                      जिन लोगों ने मनुस्मृति को नारी तथा निम्न जातियों के लोगों के लिये अपमानजनक बताकर इसको जलाया और अपमान किया वह लोग कौन थे? यह विचार करना जरूरी है।
यकीनन इनमें से कई लोग अपने अभियान को पूरा कर राजकीय पदों पर सुशोभित हुए। वह मनुस्मृति का दुष्प्रचार कर जनता में भेद डालकर आधुनिक लोकतंत्र के सहारे उसका मत लेकर राजसत्ता चाहते रहे होंगे। वह मिली और आधुनिक पदों के नाम से राजा भी वही लोग बने। वह डरते थे कि मनुस्मृति के अनेक संदेश उनकी आत्मा को रुलायेंगे, उनका सच कोई बतायेगा तो स्वयं का काला चेहरा ही अपने अंतर्मन के कांच में दिखाई देगा। सच से भागने वाले इसे सत्ता भोगियों ने मनृस्मृति से ही न केवल दूर रहने का फैसला किया बल्कि प्रजा को भी दूर रहने का प्रयास आरंभ किया।
                 हम आज देखें तो देश की क्या हालत है? घोटालों, भ्रष्टाचार तथा आतंक के साये में आम लोग जी रहे हैं। मनृस्मृति में नारी के लिये अपमाजनक टिप्पणियां दिखाने वाले विद्वान आज के युग में ही नारी की पहले से अधिक दुर्गति पर रोते हैं पर उसका हल नहीं बता पाते। वह विद्वान राज्य को दोष देते हैं पर उसी के सहारे उनकी दुकान चल रही है। ऐसा नहीं है कि इस देश में ईमानदार राज्य कर्मी या अधिकारी नहीं हैं पर कुछ लोगों ने अपना वर्चस्व इस तरह स्थापित कर लिया है कि राज्य का केंद्र बिंदु उनके इर्दगिर्द ही घूमता है और वह उसका गलत इस्तेमाल कर अपने लिये घर भरते हैं। इन भ्रष्ट लोगों के मन में बस जनता की शोषण करने की भयानक प्रवृत्ति है। इससे उनकी प्राणशक्ति कमजोर हो गयी है और भले ही वह जनता की रक्षा का कथित दावा करें पर कर नहीं  पाते।
                        कभी कभी तो प्रतीत होता  है कि आम और गरीब जनता के माध्यम से जो राजस्व आता है उसकी लूट के लिये एक तरह से बहुत सारे गिरोह बन गये हैं। कहीं न कहीं न वह सफेद चेहरा लेकर राज्य के निकट पहुंचकर वह अपना कालाचरित्र धन और पद के सफेद रंग से पोतकर उसे आकर्षक ढंग से सजा लेते हैं। ऐसे लोगों की प्राणशक्ति कमजोर होती है। बाहर से भले ही वह ढीठता दिखायें पर पर अंदर से वह अपने काले कारनामों की वजह से खौफ में जीते हैं। ऐसे में अगर कोई मनृस्मृति के राज्य से जुड़े अंश पढ़कर सुनायें तो उनको लगेगा कि कोई उनका सच ही उनके सामने बयान कर रहा है। प्राणशक्ति से क्षीण ऐसे लोग अज्ञानी पुरुष की तरह सत्य से छिपते और भागते हैं। एक बात याद रखना चाहिए कि समाज और राष्ट्र की सेवा वही कर सकते हैं जिनकी प्राणशक्ति प्रबल है और यह उनके लिये ही संभव है जो गलत काम नहीं  करते। ईमानदार और निष्ठावान लोगों की प्राणशक्ति मज़बूत होती है।
————————–

संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  ‘भारतदीप’,Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’
http://deepkraj.blogspot.com

————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन