प्रजा का शोषण करने से राजा की शक्ति क्षीण होती हैं-हिन्दू धार्मिक विचार


      शरीरकर्षणात्प्राणाः क्षीयन्ते प्राणिनां यथा।
तथा राज्ञामपि प्राणाः क्षीयन्ते राष्ट्रकर्षणात्।।

          “जिस प्रकार शरीर को भोजन पानी न देकर उसका शोषण करने से उसकी प्राणशक्ति कमजोर हो जाती है उसी तरह राष्ट्र या प्रजा का शोषण करने से राजा की प्राणशक्ति कमजोर हो जाती है।”

                      जिन लोगों ने मनुस्मृति को नारी तथा निम्न जातियों के लोगों के लिये अपमानजनक बताकर इसको जलाया और अपमान किया वह लोग कौन थे? यह विचार करना जरूरी है।
यकीनन इनमें से कई लोग अपने अभियान को पूरा कर राजकीय पदों पर सुशोभित हुए। वह मनुस्मृति का दुष्प्रचार कर जनता में भेद डालकर आधुनिक लोकतंत्र के सहारे उसका मत लेकर राजसत्ता चाहते रहे होंगे। वह मिली और आधुनिक पदों के नाम से राजा भी वही लोग बने। वह डरते थे कि मनुस्मृति के अनेक संदेश उनकी आत्मा को रुलायेंगे, उनका सच कोई बतायेगा तो स्वयं का काला चेहरा ही अपने अंतर्मन के कांच में दिखाई देगा। सच से भागने वाले इसे सत्ता भोगियों ने मनृस्मृति से ही न केवल दूर रहने का फैसला किया बल्कि प्रजा को भी दूर रहने का प्रयास आरंभ किया।
                 हम आज देखें तो देश की क्या हालत है? घोटालों, भ्रष्टाचार तथा आतंक के साये में आम लोग जी रहे हैं। मनृस्मृति में नारी के लिये अपमाजनक टिप्पणियां दिखाने वाले विद्वान आज के युग में ही नारी की पहले से अधिक दुर्गति पर रोते हैं पर उसका हल नहीं बता पाते। वह विद्वान राज्य को दोष देते हैं पर उसी के सहारे उनकी दुकान चल रही है। ऐसा नहीं है कि इस देश में ईमानदार राज्य कर्मी या अधिकारी नहीं हैं पर कुछ लोगों ने अपना वर्चस्व इस तरह स्थापित कर लिया है कि राज्य का केंद्र बिंदु उनके इर्दगिर्द ही घूमता है और वह उसका गलत इस्तेमाल कर अपने लिये घर भरते हैं। इन भ्रष्ट लोगों के मन में बस जनता की शोषण करने की भयानक प्रवृत्ति है। इससे उनकी प्राणशक्ति कमजोर हो गयी है और भले ही वह जनता की रक्षा का कथित दावा करें पर कर नहीं  पाते।
                        कभी कभी तो प्रतीत होता  है कि आम और गरीब जनता के माध्यम से जो राजस्व आता है उसकी लूट के लिये एक तरह से बहुत सारे गिरोह बन गये हैं। कहीं न कहीं न वह सफेद चेहरा लेकर राज्य के निकट पहुंचकर वह अपना कालाचरित्र धन और पद के सफेद रंग से पोतकर उसे आकर्षक ढंग से सजा लेते हैं। ऐसे लोगों की प्राणशक्ति कमजोर होती है। बाहर से भले ही वह ढीठता दिखायें पर पर अंदर से वह अपने काले कारनामों की वजह से खौफ में जीते हैं। ऐसे में अगर कोई मनृस्मृति के राज्य से जुड़े अंश पढ़कर सुनायें तो उनको लगेगा कि कोई उनका सच ही उनके सामने बयान कर रहा है। प्राणशक्ति से क्षीण ऐसे लोग अज्ञानी पुरुष की तरह सत्य से छिपते और भागते हैं। एक बात याद रखना चाहिए कि समाज और राष्ट्र की सेवा वही कर सकते हैं जिनकी प्राणशक्ति प्रबल है और यह उनके लिये ही संभव है जो गलत काम नहीं  करते। ईमानदार और निष्ठावान लोगों की प्राणशक्ति मज़बूत होती है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  ‘भारतदीप’,Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’
http://deepkraj.blogspot.com

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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