किसी की पीड़ा को देखकर कब तक
दिखावटी आंसु बहाओगे,
उसे जरूरत इलाज की है,
किसी की बेबसी पर कब तक
अपनी हमदर्दी दिखाओगे
उसे ज़रूरत सहारे की है,
कब तक तकलीफों से बचने के लिये
किसी को हंसाओगे
उसे जरूरत दिल से मुस्कराने की है,
खाली लफ्जों से इंसान का पेट नहीं भरता
मगर जिन का भरा है
वह भी बैचेनी में जीते हैं
जरूरत तसल्ली की रोटी
और रोटी से तसल्ली की है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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