आजाद होकर भी गुलाम खड़े मालिकों की कृपा के इंतजार में -हास्य व्यंग्य कविताएँ


परदेस में पुजने से ही
देश में भगवान बनेंगे
कैसा यह उनका भ्रम है।
देश के लोगों से मिले मान से
क्या गौरव नहीं बढ़ता जो
बाहर से इनाम लूटने के लिये
दौड़ का नहीं थम रहा क्रम है।

मालिकों ने कर दिया आजाद
पर फिर भी गुलाम खड़े हैं इंतजार में
उनके दरवाजे पर
कृपा में शायद कोई मिल जाये इनाम
तो बढ़े अपने घर में ही सम्मान
सच कहा है
मनुष्य को चलाता है मन उसका
देह की आजादी और गुलामी तो भ्रम है।
…………………………………
परदेस के इनाम लटके हैं
आसमान में
मिलते नहीं इसलिये चमक बरकरार है।
ख्वाब है जब तक बिक जाते है
जज्बात उनके नाम
मिल जाये तो फिर खाक हो जायेंगे
कहा भी जाता है
गुलामों का पेट कभी नहीं भरना चाहिये
भर गया तो आजाद हो जायेंगे
इसलिये परदेसी
पहले इनाम के लिये लपकाते हैं
फिर पीछे हट जाते हैं
देश चलता रहता है
उसकी आड़ में जज्बातोंे का व्यापार
दूर के ढोल सुहावने होते हैं
इसलिये उनको दूर रखो
देशी विदेशी जज्बातों के सौदागरों का
लगता यह कोई आपसी करार है

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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की सिंधु केसरी-पत्रिका ’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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