सत्य से जितनी दूर जाओगे
भ्रम को उतना ही करीब पाओगे
खवाब भले ही हकीकत होने लगें
सपने चाहे सामने चमकने लगें
उम्मीदें भी आसमान में उड़ने लगें
पर तुम अपने पाँव हमेशा
जमीन पर ही रख पाओगे
झूठ को सच साबित करने के लिए
हजार बहानों की बैसाखियों की
जरूरत होती है
सच का कोई श्रृंगार नहीं होता
कटु होते हुए भी
उसकी संगत में सुखद अनुभूति होती हैं
कब तक उससे आंखें छिपाओगे
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लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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इस लेख के अन्य बेवपत्रक/पत्रिकाएं नीचे लिखी हुईं हैं
1. अनंत शब्दयोग
2.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
acchi bate he sachchh..sachchh he… hame sachchh ka satha kabhi nahi chhodana chhahia..
HITESH MEHTA
Bharti Vidhyalay-morbi ( Gujrat)