यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नांव
कविवर रहीम कहते हैं की शरीर-रुपी बाजार में मन बिक गया, जैसे पानी में व्यक्ति का प्रतिबिबं पड़ने से जल के अन्दर समाहित व्यक्ति का शरीर वास्तविक नहीं होता. वह केवल परछाईं मात्र होता है,
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति
कटे चाटै स्वान के, दोउ भांति विपरीति
कविवर रहीम कहते हैं की तुच्छ विचार वाले नीच मनुष्य से प्रेम और द्वेष नहीं करना चाहिए, उससे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिऐ.