सपने में जब खोये रह्ते
कभी पूरी होंगे यही सोचकर
बहुत कुछ सहते
जब होता है हकीकतों की तपिश से सामना
तब सबके जिस्म जलने लगते
पूरे भी हो जाएं तो भी
सपने वैसे ही नहीं लगते
जिन्हें पालते-पोसते हैं बडे चाव से दिल में
कभी भी वह सपने सच होकर भी
अपनी नहीं लगते
हकीकतों से कब तक मुहँ मोड़ सकता है कोई
पर सपने भी कब पीछा छोड़ते
कभी-कभी जिंदा रहने का बहाना बनते हैं
जब जला देती हैं हकीकतें बदन
तब सपने देखकर ही की जा सकती है तसल्ली
पर उन पर फ़िदा होकर रोना ठीक नहीं
सपने सिर्फ सपने होते हैं
सच हो जाएं तो अपने नसीब होते
नहीं तो पराये लगते
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